Stainless Steel Rust: जब भी हम लोहे की कोई वस्तु खुले में रखते हैं और वह हवा व नमी के संपर्क में आती है. तो कुछ ही समय में उस पर एक भूरी रंग की परत बनने लगती है. यही परत दरअसल जंग (Rust) होती है. वैज्ञानिक भाषा में इसे आयरन ऑक्साइड (Iron Oxide) कहा जाता है.
यह प्रक्रिया तब होती है जब लोहा (Fe), ऑक्सीजन (O₂) और पानी (H₂O) के संपर्क में आता है. यह एक रासायनिक प्रक्रिया है जिसे संक्षारण (Corrosion) कहा जाता है. जंग लगने से लोहे की ताकत कम हो जाती है और धीरे-धीरे वह कमजोर होकर टूट सकता है.
लोहे पर जंग क्यों लगता है?
लोहा एक ऐसी धातु है जो ऑक्सीजन और नमी के साथ आसानी से रासायनिक प्रतिक्रिया करता है. जब ये तीनों (लोहा, नमी और ऑक्सीजन) मिलते हैं. तो आयरन ऑक्साइड बनने लगता है जो लोहे की सतह पर चिपक जाता है और फिर धीरे-धीरे पूरा लोहा इसकी चपेट में आ जाता है.
इसलिए बारिश, समुद्री हवा और नमी वाली जगहों पर रखा लोहा बहुत जल्दी जंग पकड़ लेता है. लोहे की बड़ी से बड़ी चादरें भी इस जंग से खराब हो जाती हैं. अगर उन्हें सुरक्षित तरीके से स्टोर न किया जाए.
स्टील क्या है और यह कैसे बनता है?
स्टील भी एक प्रकार की धातु है, लेकिन यह लोहे (Iron) और कार्बन (Carbon) के मिश्रण से बनता है. स्टील को अधिक मजबूत और टिकाऊ बनाने के लिए इसमें कई बार अन्य धातुओं का भी मिश्रण किया जाता है, जैसे – क्रोमियम, मोलिब्डेनम, निकल आदि.
जब स्टील को इस तरह से तैयार किया जाता है कि उसमें जंग न लगे, तब उसे स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel) कहा जाता है. यानी स्टेनलेस स्टील भी लोहे से ही बनता है. लेकिन इसमें कुछ खास चीजों की मिलावट से यह जंग-रोधी बन जाता है.
स्टेनलेस स्टील पर जंग क्यों नहीं लगती?
स्टेनलेस स्टील में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है क्रोमियम (Chromium) की. इसमें आमतौर पर 10.5% या उससे ज्यादा क्रोमियम मिलाया जाता है. जब यह स्टील हवा के संपर्क में आता है, तो क्रोमियम एक पतली, अदृश्य परत बना देता है जिसे क्रोमियम ऑक्साइड कहा जाता है.
यह परत लोहे को हवा और नमी के सीधे संपर्क में आने से बचाती है. जिससे जंग नहीं लगती. अगर परत को कहीं से नुकसान भी पहुंचे, तो यह अपने आप दोबारा बन जाती है. जिससे यह स्व-रक्षी (Self-healing) कहलाती है.
स्टेनलेस स्टील में और कौन-कौन सी धातुएं मिलती हैं?
स्टेनलेस स्टील को और बेहतर बनाने के लिए इसमें केवल क्रोमियम ही नहीं. बल्कि कई अन्य धातुएं भी मिलाई जाती हैं, जैसे:
- निकेल (Nickel): मजबूती और चमक बढ़ाने के लिए
- मोलिब्डेनम (Molybdenum): ज्यादा तापमान और नमी से बचाव के लिए
- नाइट्रोजन (Nitrogen): स्थायित्व और कठोरता बढ़ाने के लिए
इन सभी तत्वों की वजह से स्टेनलेस स्टील सिर्फ जंग-रोधी ही नहीं. बल्कि टिकाऊ, मजबूत और लंबे समय तक चलने वाला भी बन जाता है.
स्टेनलेस स्टील और प्लेन स्टील में अंतर
गुण | प्लेन स्टील | स्टेनलेस स्टील |
---|---|---|
जंग लगना | हां, जल्दी लगता है | नहीं लगता |
ताकत | ज्यादा | कम लेकिन पर्याप्त |
उपयोग | निर्माण, भारी मशीनें | बर्तन, मेडिकल उपकरण, चाकू |
देखभाल | ज्यादा जरूरी | कम देखभाल में चलता है |
स्टेनलेस स्टील जहां जंग से पूरी तरह बचाव करता है. वहीं प्लेन स्टील ज्यादा मजबूत होता है लेकिन जंग लगने की संभावना उसमें ज्यादा रहती है.
स्टेनलेस स्टील का रोजमर्रा में उपयोग
आज के समय में स्टेनलेस स्टील हर घर और उद्योग में इस्तेमाल हो रहा है. इसके कुछ आम उपयोग हैं:
- किचन के बर्तन: जैसे थाली, कटोरी, कुकर, चम्मच
- चाकू और शेविंग ब्लेड: तेज धार और चमक बनाए रखने के लिए
- पानी की टंकियां और बोतलें
- मेडिकल उपकरण
- रेलवे स्टेशन की रेलिंग और सार्वजनिक उपयोग की चीजें
इन सब जगहों पर स्टेनलेस स्टील का इस्तेमाल इसलिए होता है क्योंकि ये जंग नहीं पकड़ता, साफ करना आसान होता है और सालों तक नया जैसा बना रहता है.
क्या स्टेनलेस स्टील कभी जंग खा सकता है?
हालांकि स्टेनलेस स्टील जंग से सुरक्षित माना जाता है. लेकिन अगर इसे बहुत तीव्र रसायनों या नमक वाले पानी में लंबे समय तक रखा जाए, तो इसमें भी हल्की जंग लग सकती है. लेकिन यह बहुत कम होता है और अगर इसका रखरखाव ठीक से किया जाए, तो स्टेनलेस स्टील सालों तक बिना किसी समस्या के चलता है.