UPI Payment: आज के डिजिटल युग में मोबाइल से पेमेंट करना हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया है। चाहे सब्जी मंडी हो, सोना-चांदी की दुकान या फिर चाय की टपरी – हर जगह लोग फोन निकालते हैं, QR कोड स्कैन करते हैं और चंद सेकेंड में पेमेंट हो जाता है। न कैश रखने का झंझट, न एटीएम की लाइन। और यह सब संभव हुआ है UPI (Unified Payments Interface) की वजह से, जिसने भारत में डिजिटल पेमेंट को नई पहचान दी है।
मार्च 2025 में 24.77 लाख करोड़ रुपये का UPI ट्रांजैक्शन
UPI की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं कि सिर्फ मार्च 2025 में UPI के जरिए 24.77 लाख करोड़ रुपये का लेन-देन हुआ। इसमें लाखों छोटे व्यापारी, ग्राहक, दुकानदार, और ऑनलाइन खरीदार शामिल हैं। यह न सिर्फ सहूलियत का जरिया बना, बल्कि देश को कैशलेस इकोनॉमी की ओर भी तेजी से बढ़ाया।
UPI ट्रांजैक्शन अब तक फ्री लेकिन आगे क्या ?
अब तक UPI ट्रांजैक्शन पर किसी प्रकार का कोई सरचार्ज या टैक्स नहीं लगता था। इसका सबसे बड़ा फायदा यह था कि लोग निश्चिंत होकर चाहे जितनी बार भी ट्रांजैक्शन करें, उन्हें कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता था। लेकिन हाल ही में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि सरकार ₹2000 से ऊपर के UPI ट्रांजैक्शन पर 18% GST लगाने की योजना बना रही है।
क्या सच में UPI ट्रांजैक्शन पर लगेगा 18% जीएसटी ?
अभी तक सरकार की ओर से इस विषय पर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। लेकिन कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पोस्ट्स के जरिए यह बात सामने आई है कि सरकार विचार कर रही है कि बड़े अमाउंट वाले डिजिटल ट्रांजैक्शन पर GST चार्ज लगाया जाए। इस चर्चा के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि सरकार को डिजिटल पेमेंट के लगातार बढ़ते उपयोग के कारण राजस्व के अन्य स्रोतों की तलाश है।
अगर जीएसटी लगता है तो क्या होगा असर ?
अगर ₹2000 से अधिक के UPI ट्रांजैक्शन पर 18% जीएसटी लागू किया जाता है, तो यह सीधे तौर पर यूजर्स की जेब पर असर डालेगा।
उदाहरण के लिए:
अगर आप ₹3000 का UPI पेमेंट करते हैं और उस पर 18% जीएसटी लगता है, तो आपको ₹540 अतिरिक्त देना होगा।
इससे कई लोग कैश पेमेंट की ओर दोबारा लौट सकते हैं, जिससे डिजिटल इंडिया मिशन को झटका लग सकता है।
क्या यह कदम डिजिटल लेन-देन को कम कर देगा ?
डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अब तक UPI को फ्री रखा है। यदि जीएसटी जैसी फीस लगाई जाती है, तो इससे लोग छोटे-छोटे भुगतान के लिए दोबारा कैश लेन-देन की ओर रुख कर सकते हैं। छोटे दुकानदार, ग्रामीण इलाकों के व्यापारी और कम आय वाले लोग सबसे पहले इससे प्रभावित होंगे।
बैंकों और सरकार के बीच पहले भी हुई है चर्चा
UPI पर शुल्क लगाने की बात नई नहीं है। 2022 में भी एक रिपोर्ट आई थी जिसमें बताया गया था कि बैंकों और पेमेंट गेटवे कंपनियों ने सरकार से कहा था कि उन्हें इस सेवा को फ्री में जारी रखने से नुकसान हो रहा है। तब भी फिनेंस मिनिस्ट्री ने साफ किया था कि UPI फ्री रहेगा, क्योंकि यह एक “डिजिटल पब्लिक गुड” है। इस बार भी यही उम्मीद है कि सरकार डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए UPI पर टैक्स लगाने से बचेगी।
लोगों की प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर बहस तेज
जैसे ही जीएसटी की खबरें सामने आईं, सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी राय देना शुरू कर दी।
- कुछ लोगों ने कहा कि अगर टैक्स लगाया गया तो वे फिर से कैश पेमेंट को प्राथमिकता देंगे।
- वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि सरकार को ₹2000 से ऊपर के ट्रांजैक्शन पर सिर्फ बिजनेस अकाउंट्स से टैक्स लेना चाहिए, न कि आम नागरिकों से।
क्या विकल्प हो सकते हैं ?
अगर सरकार वाकई में कुछ रूप में शुल्क लगाना चाहती है, तो कुछ विकल्प हो सकते हैं:
- बिजनेस और पर्सनल ट्रांजैक्शन में फर्क करें।
- सिर्फ हाई-वैल्यू ट्रांजैक्शन पर टैक्स लागू करें, जैसे ₹50,000 या ₹1 लाख से ऊपर।
- डिजिटल पेमेंट को टैक्स फ्री बनाए रखें, लेकिन कंपनियों से मामूली शुल्क लिया जाए।
फिलहाल घबराने की जरूरत नहीं सरकार का फैसला अहम होगा
UPI आज देश की आर्थिक रफ्तार का एक अहम हिस्सा बन चुका है। यह न केवल आसान है, बल्कि सुरक्षित और तेज़ भी है। हालांकि ₹2000 से ऊपर के ट्रांजैक्शन पर 18% जीएसटी लगाए जाने की खबरें लोगों को चिंतित कर रही हैं, लेकिन सरकार की ओर से अभी कोई आधिकारिक फैसला नहीं आया है। जब तक कोई पक्की घोषणा नहीं होती, तब तक UPI ट्रांजैक्शन फ्री ही रहेंगे।