Action On Private Schools: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस और महंगी किताबें थोपने की शिकायतें लंबे समय से आ रही थीं. शासन के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद कई स्कूल किताबें, यूनिफॉर्म और अन्य शैक्षिक सामग्री के नाम पर अभिभावकों से अनुचित रूप से अधिक पैसे वसूल रहे थे. इन शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए जिला कलेक्टर पार्थ जैसवाल ने कड़ा रुख अपनाया और अब इन स्कूलों पर वित्तीय दंड के साथ चेतावनी जारी की गई है.
जांच समिति ने स्कूलों की गतिविधियों का किया निरीक्षण
नवीन शैक्षणिक सत्र 2025–26 के प्रारंभ होते ही शिकायतों की संख्या बढ़ने लगी थी, जिसके बाद कलेक्टर ने तीन सदस्यीय ब्लॉक स्तरीय निरीक्षण समिति का गठन किया. यह समिति विभिन्न स्कूलों का निरीक्षण कर रही थी. ताकि यह पता लगाया जा सके कि नियमों का पालन हो रहा है या नहीं. निरीक्षण के बाद जो रिपोर्ट तैयार हुई. उसे जिला स्तरीय समिति को सौंपा गया.
इन प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ हुई कार्रवाई
जिला कलेक्टर द्वारा जारी नोटिस में छतरपुर के प्रमुख स्कूलों जैसे—
- डीपीएस (DPS)
- क्रिश्चियन स्कूल
- शीलिंग होम
- सुमति एकेडमी
- एडिफाई स्कूल
- डीसेंट स्कूल
को कारण बताओ नोटिस भेजा गया. इन स्कूलों से यह पूछा गया कि उनके द्वारा वसूली गई अतिरिक्त राशि और अनियमित गतिविधियों का जवाब क्यों न दिया जाए. जब स्कूलों ने नोटिस का जवाब दिया, तो उनकी बातों की पुनः जांच ईशानगर के विकासखंड शिक्षा अधिकारी से कराई गई.
जवाब पाए गए तथ्यहीन
जांच के बाद यह पाया गया कि स्कूलों द्वारा दिया गया जवाब संतोषजनक नहीं था. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि इन स्कूलों ने शासकीय आदेशों का पालन नहीं किया और लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा 15 सितंबर 2022 को जारी आदेश की भी अनदेखी की गई.
प्रत्येक स्कूल पर ₹1 लाख का जुर्माना
कलेक्टर ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि इन स्कूलों ने म.प्र. स्कूल शिक्षा विभाग के मान्यता (संशोधन) नियम 2017 के नियम 11 (2) का उल्लंघन किया है. इसलिए प्रत्येक स्कूल पर ₹1,00,000 का जुर्माना लगाया गया है. इसके साथ ही भविष्य में दोहराव से बचने की चेतावनी भी दी गई है.
वसूली गई अतिरिक्त राशि लौटाने का आदेश
जिला समिति ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि किसी भी अभिभावक से किताबें या अन्य सामग्री निर्धारित मूल्य से अधिक कीमत पर बेची गई है, तो वह अतिरिक्त राशि तत्काल अभिभावक को लौटाई जाए. साथ ही स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में छात्रों से बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर कोई भी सामग्री न बेची जाए.
किताबों के अधिकतम मूल्य की सूची हुई सार्वजनिक
प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया है कि कक्षा 1 से 8 तक की किताबों के अधिकतम मूल्य तय हैं और स्कूलों को इन्हीं दरों के अनुसार ही पुस्तकें उपलब्ध करानी होंगी. उदाहरणस्वरूप:
एनसीईआरटी (NCERT) की पुस्तकें:
- कक्षा 1–2: ₹195
- कक्षा 3: ₹390
- कक्षा 4–5: ₹260
- कक्षा 6: ₹780
- कक्षा 7: ₹940
- कक्षा 8: ₹960
म.प्र. पाठ्यपुस्तक निगम (MP Textbook Corporation):
- कक्षा 1: ₹194
- कक्षा 2: ₹240
- कक्षा 3: ₹315
- कक्षा 4: ₹289
- कक्षा 5: ₹317
- कक्षा 6: ₹504
- कक्षा 7: ₹509
- कक्षा 8: ₹547
इन अधिकतम दरों से अधिक राशि में पुस्तकें बिकना स्पष्ट रूप से अवैध और दंडनीय है.
अभिभावकों की जीत, स्कूलों पर बढ़ी जवाबदेही
यह फैसला न केवल स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने वाला है. बल्कि अभिभावकों की लंबे समय से की जा रही शिकायतों को भी मान्यता देता है. इससे अन्य जिलों के स्कूलों को भी एक स्पष्ट संदेश मिलेगा कि अगर वे शासकीय निर्देशों की अनदेखी करेंगे. तो प्रशासन सख्त कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगा.
स्कूलों की जिम्मेदारी तय करना समय की मांग
प्राइवेट स्कूलों द्वारा अभिभावकों पर जबरन निर्धारित दुकानों से यूनिफॉर्म और किताबें खरीदने का दबाव, न केवल शैक्षणिक अनुशासन के खिलाफ है. बल्कि यह एक तरह का आर्थिक शोषण भी है. प्रशासन की यह कार्रवाई एक अनुकरणीय उदाहरण बन सकती है अगर इसे अन्य जिलों और राज्यों में भी लागू किया जाए.